रूस-यूक्रेन विवाद को समझने के लिए हमे इसके इतिहास में जाना होगा। यूक्रेन पहले रूस का ही हिस्सा हुआ करता था। लेकिन 1991 में, जब सोवियत संघ का विघटन हुआ तो ये 15 राष्ट्रों में विभक्त हो गया। यूक्रेन एक अलग और स्वतंत्र देश बन गया और इसके साथ कई अन्य देश भी। फिलहाल रूस की पश्चिमी सीमा और यूक्रेन की पूर्वी सीमा आपस में लगती है।

हाल के ही दिनों में रूस यूक्रेन से लगे सीमा में अपने सैनिकों को बढ़ा रहा है। इससे दोनो देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में काफी तनाव की स्थिति बन गई है। अभी बात इतनी बढ़ गई है कि कभी भी युद्ध छिड़ सकती है।

अब बात आती है रूस के यूक्रेन सीमा में सैनिक बढ़ान के क्या कारण है? आखिर रूस ऐसा क्या चाहता है यूक्रेन से? 

दरअसल बात कुछ यूं है कि यूक्रेन NATO का सदस्य बनना चाहता है और रूस इसे रोकना चाहता है। रूस नही चाहता है कि यूक्रेन का सदस्य बने।

यूक्रेन NATO में क्यों जाना चाहता है

युक्रेन एक स्वतंत्र देश है और यह अपनी स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए नाटो मे शामिल होना चाहता है। क्योंकि, यूक्रेन को लगता है कि रूस एक शक्तिशाली देश है और ये कभी भी यूक्रेन पर हमला कर सकता है। ऐसे में यूक्रेन अपनी संप्रभुता और सुरक्षा को सुनिश्चित करना चाहता है और इसे लगता है कि NATO से अच्छा विकल्प इसके लिए अभी कोई नही है।

हमला का डर क्यों है यूक्रेन को रूस से

दरअसल रूस यूक्रेन का एक दक्षिणी हिस्सा - क्रीमिया (Cremia) जो Black Sea से उत्तर दिशा की तरफ लगता है, पर रूस ने 2014 मे कब्जा कर लिया था। इससे यूक्रेन को लगता है की रूस कभी भी यूक्रेन पर भी हमला कर सकता है।

NATO क्या है

NATO कई देशों का एक समूह है जो अंतराष्ट्रीय सैन्य-गठबंधन के लिए समझौते कर रखे हैं। इनमे अमेरिका, कनाडा और बहुत से यूरोपीय देश शामिल हैं। इनका कहना है कि अगर कोई बाहरी देश नाटो के किसी भी सदस्य देश पर हमला करता है तो ये उसका जवाब संयुक्त रूप से देंगे।


रूस इसका क्यों  विरोध क्यों कर रहा है

NATO एक ऐसा समूह है जिसे रूस अपना दुश्मन मानता है।
यूक्रेन इसका पड़ोसी देश है और रूस नही चाहता की उसका पड़ोसी देश उसमें शामिल हो। रूस इसे अपना security- concern बता रहा है। 

अगर युद्ध हुआ तो इसका किन किन देशों पर प्रभाव पड़ेगा

अगर युद्ध हुआ तो इसका प्रभाव लगभग अधिकांश देशों पर पड़ने वाला है। चीन ने तो रूस को खुलकर समर्थन दे दिया है।
इसके अलावा कई यूरोपीयन Country के लिए गैस की निर्भरता रूस पर है। जर्मनी सहित कई अन्य देश अपनी गैस आयात का एक-तिहाई भाग रूस से करवाता है। अमेरिका जहां रूस को यूक्रेन पर हमले ना करने की चेतावनी देता है वहीं रूस उसे इसमें टांग ना अड़ाने को बोलता है। अमेरिका कई तरह के बड़े बड़े प्रतिबंध लगाने की बात करता है तो वही रूस का कहना है की इस प्रतिबंध से ज्यादा नुकसान अमेरिका को ही होगा। यूरोपीयन देशों में अभी से ही गैस का दाम 400-500% बढ़ गई है। 

भारत का इस पर बयान तथा इसका प्रभाव

भारत और रूस की पुरानी-मित्रता है। भारत अपनी सुरक्षा उपकरणोंका 50-60% आयात रूस से करता है। भारत - अमेरिका संबंध भी कुछ दशकों से सुधर कर एक अच्छी स्थिति में आई है। ऐसे में भारत के लिए कुछ भी कहना या इस पर टिप्पणी करना बहुत चुनौतीपूर्ण होगा। 

भारत का पाकिस्तान या चीन से जब भी सीमा विवाद हुआ है तब रूस ने अपने आप को तटस्थ रखने की कोशिश की है।
ये भारत का सभी द्विपक्षीय मामला है। इसमें रूस ने कभी हस्तक्षेप नहीं किया है ना ही भारत ने रूस को अपनी तरफ करने के लिए बाध्य किया है। चीन भी रूस का दोस्त है और भारत भी। इसलिए रूस हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
अमेरिका इस विवाद में यूक्रेन की तरफ है और और इस तरह रूस और अमेरिका आमने-सामने आ जायेंगे। इस तरह भारत भी इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता। शांतिपूर्ण तरीके से बातचीत करके इस मसले का हल निकाला जाए, भारत इसी के पक्ष में रहा है चाहे कोई भी देश हो।